Saturday, January 9, 2010

कितना मुश्किल है यारो अलविदा कहना

ज़िन्दगी के सारे अरमान लिए,
आँखों में मंजिल के सपने संजोये,
निकल पड़े थे घर से , अपनों को छोड़ कुछ पाने के लिए।
जब रखा पहला कदम देहलीज के बाहर, लगा ज़िन्दगी छुट रही हैं ,
मंजिल को पाने निकले ज़रूर ,मगर माँ की ममता छुट रही हैं ।
पापा ने कहा ," जा बेटा कुछ कर दिखाना ",
माँ ने कहा ," बेटा घर ज़ल्दी आना",
दोंस्तो ने कहा," यार हमे मत भूलना "।
तब लगा सचमुच,
कितना मुश्किल हैं यारो अलविदा कहना।

अब वक़्त आया हैं घर लौट जाने का,
जो ममता और प्यार छुटा था उसे फिर पाने का,
मगर आज मन इजाजत नहीं दे रहा हैं ,
क्यूंकि आज फिर वक़्त आ गया हैं अपनों को छोड़ जाने का।'
कभी सोचा न था ,जो पराये हैं वे अपने हो जायेंगे ,
दोस्ती हुई हैं ऐसी ,उम्रभर निभा जायेंगे।
मगर अब वक़्त हैं साथियों को अलविदा कहने का,
डर हैं मन में पता नहीं फिर कब मिल पाएंगे।

तब माँ ने कहा था ," बेटा घर जल्दी लौटना"।
मगर आज मन चाहता हैं कुछ और बहाने ,ताकि हो साथियों संग कुछ और पल जीना।
आज यह नए दोस्त फिर कह रहे हैं "यार हमे मत भूलना "।
भारी हो गया मन आज इतना इनके प्यार से ,
फिर लगता है ,
कितना मुश्किल हैं यारो अलविदा कहना।

2 comments:

  1. Wow this is amazing.. Seriously mujhe apne hostel ke din yaad aa gaye... Kya bolte Prateek, Rishi, Kumar....??

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  2. bhai sahi hai..maza aa gaya......

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