Saturday, September 20, 2014

अपना देस और भी अपना लगने लगा !!

जब आये थे यहा, थोड़ी ख़ुशी थोड़ा डर सा लगा ,
नया नया सबकुछ  साफ़ सुन्दर सपना सा लगने लगा
कुछ अच्छे लोग मिले ,दोस्ती हुई, तो थोड़ा अपना सा भी लगने लगा
सबकुछ बढ़िया हैं,फर्स्ट क्लास हैं यहाँ                        
कोई कमी नहीं हैं,
पर सच कहु दोस्तों ,
अब अपना देस और भी अपना लगने लगा !!

हिंदी मूवी देखते हैं तो देस की मिटटी की खुशबु यहाँ तक आती हैं ,
वहाँ के भीड़ और भागदौड़ में भी खूबसूरती नज़र आती हैं.
माँ-पापा का प्यार,
ससुराल का लाड ,यह लड़की ज्यादा मिस करती हैं
'कब आउ  लेने' भाइयो का ऐसा पुछना हमें  निरुत्तर कर देती  हैं।
जो भी हैं,सबकुछ वहीं हैं!
दूर होकर हर रिश्ता ,हर दोस्त सच्चा लगने लगा
हाँ ,अब अपना देस और भी अपना लगने लगा !!

सच्चाई यह भी हैं ,
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता हैं,
कभी कभी कुछ समय के लिए अपनों से दूर जाना पड़ता हैं !
कोई शिकवा नहीं,कोई शिकायत भी नहीं,
क्यूंकि ,डेरा चाहे कहीं भी हो पंछी लौटेंगे घरौंदे में ही उतना हैं यक़ीन !

बस,उस वक़्त का अभी पता लगा,
अब अपना देस और भी अपना लगने लगा !!


Friday, January 28, 2011

बताओ क्या?

अपनी काबिलियत को दर्शाये,

कोने में बैठे उस डर को भगाए,

कभी तो बहोत इन्तेजार करवाए,

और कभी घर बैठे ही हो जाये.

किसी को हार, किसी को जित दिलाए,

कभी चुटकी मे तो कभी खूब दौडाए,

हुई अच्छी, तो दिन बना जाए,

गर हुई बेकार तो ‘mood’ बिगड जाए.

लेकिन ये तो है वो आगे ही बढ़ाये,

मायूसी मिले एक बार तो १०० बार हौसला भी दे जाए,

बताइए ये क्या कहलाये?

अरे दोस्तों ये तो .......... Interview कहलाये J

Tuesday, January 25, 2011

नटखट तक्ष

माखन खात कन्हैया मोरा,

लुक-छुप लुक-छुप जात है,

नटखट हलचल शरारती आँखे,

मंद मंद मुस्कात है.

दादा ताता करत करत,

मस्ती करत ही जात है,

उलटी पुल्टी हरकत उसकी,

हसत और हसात है.

जो हम सिखाए वो न सीखे,

बस अपनी मर्ज़ी चलात है,

दौड दौड के धूम करे खूब,

थके नहीं पर हमको खूब थकात है.

मीठी प्यारी बोली उसकी,

पर हमको समझ न आत है,

माँ बनाकर उसने मुझे,

दिया अनमोल अहसास है.

Thursday, March 11, 2010

बुरा न मनो होली है

सासु जी तुमसे खेलु होली आज
भांग पीकर बन जाऊ तुम्हारी सास
रोब जमाऊ, हुकुम चलाऊ, हो ऐसा काश
बर्तन मंज्वाऊ, झाड़ू लगवाऊ, ऐसा करो तुम आज।

पियाजी तुमसे खेलु होली आज
भांग पिकर आर्डर करू तुम पर आज
नव लखा हार लू, मर्सिडीज़ कार लू
बनू में महारानी सेवक बनाऊ तुमको आज।

हंसी मजाक से भरी सहेलियो की टोली है
दिल पे मत लेना कुछ भी क्यों की वो कहते हई बुरा न मनो होली है।

Friday, January 15, 2010

मेरी पसंदीदा कविता ( जो मैंने नहीं लिखी)

दुःख बड़े काम की चीज़ हैं!

दुःख न हो तो कोई याद नहीं करेगा,
कोई प्रभु से फ़रियाद नहीं करेगा!

सुख चालक हैं,भटकाता हैं!
अपने पते पर कभी नहीं मिलता!
दुःख भोला भाला हैं,
दूसरो के पते पर भी मिल जाया करता हैं!

दुखी बने रहो ,कोई इर्ष्या नहीं करेगा,
सुखी हो गए तो संसार नहीं सहेगा!

दुःख अन्तरंग हैं ,
सदा संग संग हैं!
सुख तो हैं उछ्रुन्खाल,
दुःख में तमीज हैं
दुःख बड़े काम की चीज़ हैं !!!

कवी:- सरोज कुमार

Saturday, January 9, 2010

कितना मुश्किल है यारो अलविदा कहना

ज़िन्दगी के सारे अरमान लिए,
आँखों में मंजिल के सपने संजोये,
निकल पड़े थे घर से , अपनों को छोड़ कुछ पाने के लिए।
जब रखा पहला कदम देहलीज के बाहर, लगा ज़िन्दगी छुट रही हैं ,
मंजिल को पाने निकले ज़रूर ,मगर माँ की ममता छुट रही हैं ।
पापा ने कहा ," जा बेटा कुछ कर दिखाना ",
माँ ने कहा ," बेटा घर ज़ल्दी आना",
दोंस्तो ने कहा," यार हमे मत भूलना "।
तब लगा सचमुच,
कितना मुश्किल हैं यारो अलविदा कहना।

अब वक़्त आया हैं घर लौट जाने का,
जो ममता और प्यार छुटा था उसे फिर पाने का,
मगर आज मन इजाजत नहीं दे रहा हैं ,
क्यूंकि आज फिर वक़्त आ गया हैं अपनों को छोड़ जाने का।'
कभी सोचा न था ,जो पराये हैं वे अपने हो जायेंगे ,
दोस्ती हुई हैं ऐसी ,उम्रभर निभा जायेंगे।
मगर अब वक़्त हैं साथियों को अलविदा कहने का,
डर हैं मन में पता नहीं फिर कब मिल पाएंगे।

तब माँ ने कहा था ," बेटा घर जल्दी लौटना"।
मगर आज मन चाहता हैं कुछ और बहाने ,ताकि हो साथियों संग कुछ और पल जीना।
आज यह नए दोस्त फिर कह रहे हैं "यार हमे मत भूलना "।
भारी हो गया मन आज इतना इनके प्यार से ,
फिर लगता है ,
कितना मुश्किल हैं यारो अलविदा कहना।

Barish

रिमझिम रिमझिम बारिश आई,
झुमझुम खुशिया है लाई,
ढिशुम ढिशुम करते है बदल,
चमक चमक बिजली हमे डराई।

इन्द्रधनुष भी मस्ती करता,
मैं कागज की नाव बनता,
मम्मी बोले," छाता ले जाओ",
मैं तो ऐसे ही भाग जाता।

छप छप करता , मौज मनाता,
बारिश में मैं तो धूम मचाता।
पंछी नाचे, फूल भी नाचे,
मैं भी नाचू, बड़ा मजा आता।