Saturday, September 20, 2014

अपना देस और भी अपना लगने लगा !!

जब आये थे यहा, थोड़ी ख़ुशी थोड़ा डर सा लगा ,
नया नया सबकुछ  साफ़ सुन्दर सपना सा लगने लगा
कुछ अच्छे लोग मिले ,दोस्ती हुई, तो थोड़ा अपना सा भी लगने लगा
सबकुछ बढ़िया हैं,फर्स्ट क्लास हैं यहाँ                        
कोई कमी नहीं हैं,
पर सच कहु दोस्तों ,
अब अपना देस और भी अपना लगने लगा !!

हिंदी मूवी देखते हैं तो देस की मिटटी की खुशबु यहाँ तक आती हैं ,
वहाँ के भीड़ और भागदौड़ में भी खूबसूरती नज़र आती हैं.
माँ-पापा का प्यार,
ससुराल का लाड ,यह लड़की ज्यादा मिस करती हैं
'कब आउ  लेने' भाइयो का ऐसा पुछना हमें  निरुत्तर कर देती  हैं।
जो भी हैं,सबकुछ वहीं हैं!
दूर होकर हर रिश्ता ,हर दोस्त सच्चा लगने लगा
हाँ ,अब अपना देस और भी अपना लगने लगा !!

सच्चाई यह भी हैं ,
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता हैं,
कभी कभी कुछ समय के लिए अपनों से दूर जाना पड़ता हैं !
कोई शिकवा नहीं,कोई शिकायत भी नहीं,
क्यूंकि ,डेरा चाहे कहीं भी हो पंछी लौटेंगे घरौंदे में ही उतना हैं यक़ीन !

बस,उस वक़्त का अभी पता लगा,
अब अपना देस और भी अपना लगने लगा !!


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